PM Awas Yojana में घोटाला: मध्य प्रदेश के खंडवा से सामने आई एक चौंकाने वाली सच्चाई ने प्रधानमंत्री आवास योजना पर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक स्टिंग ऑपरेशन ने इस योजना में हो रही कथित रिश्वतखोरी का खुलासा किया है, जिसमें सरकारी कर्मचारी घर दिलाने के बदले खुलेआम पैसे मांगते नजर आए। सवाल ये है कि क्या ये केवल एक व्यक्ति की करतूत है या पूरा सिस्टम ही रिश्वतखोरी में है?
पीएम आवास योजना का उद्देश्य और जमीनी हकीकत
प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) का उद्देश्य था कि हर गरीब के सिर पर छत हो और उनका खुद का पक्का माकन हो। लाखों लोगों को इससे उम्मीद बंधी थी कि सरकारी सहायता से उन्हें अपना घर मिलेगा। लेकिन खंडवा से आई इस रिपोर्ट ने उस उम्मीद को झटका दिया और जिन लोगों को अभी तक इस योजना का लाभनहि मिला है उनके लिए चिंता का विषय बन गए है।
खंडवा से सामने आई खबर के अनुसार यहां खुलासा हुआ है कि पात्र लाभार्थियों को योजना का फायदा दिलाने के नाम पर 20 से 30 हजार रुपये तक की मांग की जा रही है। गरीबों के हक को मुट्ठी भर लालची कर्मचारी अपने फायदे के लिए बेच रहे हैं।
स्टिंग ऑपरेशन में कैद हुआ भ्रष्ट सिस्टम
इस घोटाले की तह तक जाने के लिए एक स्टिंग ऑपरेशन किया गया जिसमे छिपे हुए कैमरे में एक व्यक्ति, ईजीआईएस कंपनी के कर्मचारी सनिल शर्मा से यह पूछता है कि उसे योजना का लाभ कैसे मिलेगा। जिस पर सनिल का जवाब चौंकाने वाला था – “20 हजार लगेंगे, 15 में करवा दूंगा।” यह बातचीत कैमरे में रिकॉर्ड हो गई, जिससे यह साबित हो गया कि योजना में भ्रष्टाचार पर्याप्त रूप से चल रहा है।
फर्जी पात्रता और असली रिश्वत का खेल
नगर निगम ने योजना के लाभार्थियों का सत्यापन और जियोटैगिंग ईजीआईएस कंपनी को सौंपा था। लेकिन उसी प्रक्रिया में सबसे ज्यादा गड़बड़ी सामने आई है। रिपोर्ट के अनुसार, पैसे लेकर अपात्रों को पात्र घोषित किया जा रहा है और असली जरूरतमंद लोग सिर्फ इसलिए वंचित हो रहे हैं क्योंकि वे रिश्वत नहीं दे सकते। यह मामला सिर्फ नैतिक नहीं, कानूनी अपराध भी है।
प्रशासन की पहली प्रतिक्रिया – मामला शासन तक पहुंचा
नगर निगम आयुक्त प्रियंका राजावत ने मामले की गंभीरता को समझते हुए इसे शासन के पास भेजा है। उन्होंने शासन को सूचित किया है कि कंपनी का एक कर्मचारी रिश्वत लेकर अपात्रों को शामिल कर रहा है। हालांकि अभी तक यह साफ नहीं हुआ है कि शासन इस पर क्या कड़ा कदम उठाएगा। केवल चेतावनी, सस्पेंशन या सीधे FIR और गिरफ्तारी?
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अकेला कर्मचारी या पूरा नेटवर्क?
स्थानीय निवासियों की मानें तो यह कोई अकेले व्यक्ति का मामला नहीं है। निगम के भीतर के कुछ अधिकारी, कंपनी के अन्य कर्मचारी और बाहरी दलाल सब इसमें मिले हुए हैं। कुछ लोगों ने बताया कि जब उन्होंने पैसे देने से मना किया तो उनके डॉक्युमेंट्स अधूरे बताकर फाइल रोक दी गई। ऐसे में पूरा सिस्टम शक के घेरे में है।
जनता की आवाज़ – ये योजना गरीबों के लिए है, दलालों के लिए नहीं
लोगों का गुस्सा अब खुलकर सामने आ रहा है। इस आवास योजना का उद्देश्य उन लोगों को घर देना था, जो सच में बेघर हैं। लेकिन आज, जो पैसा दे सकता है वही घर ले सकता है चाहे वह पात्र हो या नहीं। इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए और दोषियों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए ताकि गरीबों का हक सुरक्षित रहे।
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मुझे लगता है कि ये स्टिंग ऑपरेशन सिर्फ एक शुरुआत है। असली काम अब शुरू होना चाहिए। अगर ऐसे मामलों पर सिर्फ सस्पेंशन देकर खानापूर्ति की गई तो ये गंदगी और फैलेगी। ज़रूरत है कि दोषियों के खिलाफ FIR हो, गिरफ्तारी हो और जिन गरीबों को वंचित किया गया है, उनकी फिर से जांच कर उन्हें घर का अधिकार मिले।
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