MP में तबादलों पर कशमकश: कर्मचारियों की कोर्ट में दस्तक, सरकार ने खुद को किया तैयार

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MP News: मध्य प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों के तबादलों को लेकर एक बार फिर बवाल उठने वाला है। सरकार ने ट्रांसफर की डेडलाइन तो बढ़ा दी, लेकिन इसके साथ विवादों का सिलसिला भी बढ़ता दिख रहा है। अब कई अधिकारी और कर्मचारी ट्रांसफर ऑर्डर को हाईकोर्ट में चुनौती देने की तैयारी कर रहे हैं। सरकार को भी अंदेशा है, इसलिए उसने पहले ही कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया है।

MP में तबादलों पर कशमकश

मध्य प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों के तबादलों को लेकर एक बार फिर बवाल उठने वाला है। सरकार ने ट्रांसफर की डेडलाइन तो बढ़ा दी, लेकिन इसके साथ विवादों का सिलसिला भी बढ़ता दिख रहा है। अब कई अधिकारी और कर्मचारी ट्रांसफर ऑर्डर को हाईकोर्ट में चुनौती देने की तैयारी कर रहे हैं। सरकार को भी अंदेशा है, इसलिए उसने पहले ही कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया है।

मध्य प्रदेश सरकार ने तबादला समयसीमा बढ़ाई

1 मई से लागू तबादला नीति की समयसीमा अब 30 मई तक बढ़ा दी गई है। इससे सरकारी कर्मचारियों को राहत जरूर मिली, लेकिन साथ ही यह भी साफ हो गया कि बहुत से कर्मचारी इस पूरे प्रोसेस से खुश नहीं हैं।

मध्य प्रदेश सरकार ने ये फैसला “प्रशासनिक सहूलियत” के आधार पर लिया है, लेकिन कई कर्मचारी इसे “मनमानी” बता रहे हैं। इसीलिए अब इस फैसले की न्यायिक समीक्षा की मांग तेज हो गई है।

मध्य प्रदेश सरकार पहले से अलर्ट

मध्य प्रदेश सरकार को इस बात का अंदेशा था कि तबादलों को लेकर कोर्ट में याचिकाएं आ सकती हैं। इसलिए शिक्षा विभाग और अन्य विभागों ने जबलपुर, ग्वालियर और इंदौर हाईकोर्ट में केविएट याचिकाएं दाखिल कर दी हैं।

इसका मतलब ये है कि अगर कोई कर्मचारी ट्रांसफर के खिलाफ याचिका दायर करता है, तो कोर्ट बिना सरकार का पक्ष सुने कोई निर्णय ना दे। यह एक “प्री-कॉशनरी लीगल मूव” है,  जिससे सरकार खुद को कानूनी उलझनों से बचा रही है।

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शिक्षकों और कर्मचारियों में नाराज़गी

मध्य प्रदेश स्कूल शिक्षा विभाग के कई शिक्षक और गैर-शैक्षणिक कर्मचारी इस नीति को “तरजीही और पक्षपाती” बता रहे हैं। कई मामलों में कर्मचारियों को दूरस्थ इलाकों में भेजा गया है, जबकि कुछ को लगातार शहरी पोस्टिंग मिलती रही है।

कर्मचारियों का कहना है कि उनकी पारिवारिक स्थितियों, स्वास्थ्य समस्याओं, या पूर्व सेवा रिकॉर्ड को नजरअंदाज़ किया जा रहा है। इस असंतोष के चलते कोर्ट में चुनौती देना अब ज़्यादा दूर नहीं लगता। हर साल तबादलों को लेकर मध्य प्रदेश में विवाद होता है। सवाल ये है कि जब नीति हर बार बनती है, तो फिर कर्मचारी हर बार कोर्ट क्यों जाते हैं?

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मुझे लगता है कि एक सरकारी कर्मचारी के लिए तबादला सिर्फ एक स्थान परिवर्तन नहीं होता वो उनके परिवार, बच्चों की पढ़ाई, बीमार माता-पिता, और पूरे जीवन पर असर डालता है। अगर यह नीति सेवा हित में है तो संवेदनशीलता और पारदर्शिता भी उतनी ही जरूरी है। सरकार अगर पहले से कोर्ट में तैयार है, तो शायद उसे पहले ये सोचना चाहिए कि ये नौबत क्यों आई। 

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  • Atmaram Maha Vidyalaya

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