MP News: मध्य प्रदेश के सागर जिले से एक चिंता बढ़ाने वाली खबर सामने आई है। जहां सरकारी स्कूलों में सुविधाएं तो हैं, लेकिन छात्र नहीं। स्मार्ट क्लास हो या मुफ्त किताबें, सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद यहां के बच्चे इन स्कूलों से दूरी बना रहे हैं। सवाल यह है कि आखिर ऐसी क्या कमी रह गई जो स्कूल अब वीरान होते जा रहे हैं? और इतनी सुविधा के बाद भी सरकारी स्कूल बंद होने की कगार में हैं।
देखें क्यों घट रही है सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या
सागर जिले के तीन बड़े सरकारी स्कूल—मोतीलाल नेहरू नगर निगम स्कूल, शासकीय पद्माकर हायर सेकंडरी स्कूल और शासकीय उर्दू हाईस्कूल—तीनों में छात्रों की संख्या खतरनाक रूप से गिर रही है। जहां एक तरफ सरकार ‘स्कूल चलें हम’ जैसे अभियान चला रही है, वहीं दूसरी तरफ स्कूलों के प्रांगण सन्नाटे से भर गए हैं।
शहर के बच्चे अब CM Rise या प्राइवेट एक्सीलेंस स्कूलों की तरफ रुख कर रहे हैं। इनमें बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर, आधुनिक सुविधाएं और अंग्रेज़ी माध्यम पढ़ाई की एक अलग प्रतिष्ठा है, जो अभिभावकों को लुभा रही है। और यही कारण है कि अब लोग सरकारी स्कूलों से दूरी बना रहे हैं।
मोतीलाल नेहरू स्कूल में 93 में से सिर्फ 9 बच्चे
बीते वर्ष इस स्कूल में 93 बच्चों का नामांकन था। लेकिन नए सत्र में केवल 9 बच्चों के दस्तावेज दाखिल हुए हैं—वो भी अधूरे। इतना ही नहीं, नवमी से दसवीं में प्रमोट किए गए छात्र तक स्कूल वापस नहीं लौटे। यहां 9 शिक्षक मौजूद हैं, लेकिन पढ़ाने के लिए छात्र नहीं। स्मार्ट क्लास, पर्याप्त स्टाफ, और बुनियादी सुविधाओं के बावजूद छात्र लगातार कम हो रहे हैं।
पद्माकर स्कूल में स्टाफ आता है, लेकिन छात्र नहीं
पद्माकर स्कूल में यहां अभी 60 विद्यार्थी दर्ज हैं, लेकिन नए एडमिशन की स्थिति शून्य है। कुछ बच्चों ने रुचि तो दिखाई, लेकिन दाखिला लेने नहीं आए। प्राचार्य मनोज अग्रवाल ने बताया कि घर-घर संपर्क किया गया, पर बच्चे रुचि नहीं दिखा रहे। इस स्कूल का माहौल अब खाली इमारत जैसा हो गया है—जहां शिक्षक तो हैं, लेकिन पढ़ने वाला कोई नहीं।
उर्दू हाईस्कूल लाखों की बिल्डिंग, सिर्फ 10 छात्र
शासकीय उर्दू हाईस्कूल परकोटा में स्थिति और भी खराब है। कक्षा 9वीं और 10वीं में सिर्फ 10 छात्र हैं।
पिछले साल का खराब रिजल्ट, उर्दू माध्यम की घटती रुचि, और अभिभावकों का बढ़ता रुझान इंग्लिश मीडियम की ओर—इन सबने मिलकर इस स्कूल को लगभग खाली कर दिया है।
“स्कूल चलें हम” अभियान कितना कारगर?
विकासखंड अधिकारी मनोज तिवारी के मुताबिक अप्रैल से फिर से स्कूल चलें हम अभियान शुरू किया गया है। शिक्षक घर-घर जाकर छात्रों को बुला रहे हैं, लेकिन सच्चाई यही है कि शहरी परिवार अब इन स्कूलों को अंतिम विकल्प मानते हैं।
CM Rise और प्राइवेट स्कूलों की ब्रांडिंग के सामने पारंपरिक सरकारी स्कूल फीके पड़ते जा रहे हैं।
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ये सिर्फ सागर की कहानी नहीं, बल्कि पूरे देश के सरकारी शिक्षा की एक झलक है। सरकारी स्कूलों को केवल सुविधाएं देकर नहीं, बल्कि विश्वास और रिजल्ट देकर मजबूत करना होगा। जब तक शिक्षक प्रेरित नहीं होंगे, रिजल्ट अच्छा नहीं होंगे, और पढ़ाई व्यवहारिक नहीं होगी—तब तक माता-पिता का भरोसा लौटना मुश्किल है।
आपका क्या कहना है इस मुद्दे पर? नीचे अपनी राय ज़रूर शेयर करें। सरकारी स्कूलों को दोबारा बच्चों से भरने के लिए क्या किया जाना चाहिए? आपकी एक राय बदलाव का हिस्सा बन सकती है।
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