MP News: भोपाल में विश्व पर्यावरण दिवस पर कुछ ऐसा हुआ जो सिर्फ भाषण नहीं, भावनाओं की जमीन से उपजा आंदोलन लगता है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान की शुरुआत की — और इसके साथ एक ऐसी चेतना भी जगाई जो सिर्फ पर्यावरण नहीं, संवेदनशीलता का भी प्रतीक बन गई। इस मौके पर छात्रों को छात्रवृत्ति, संस्थानों को सम्मान और पूरे समाज को एक संदेश मिला, अब समय आ गया है, सिर्फ बातों से नहीं, काम से बदलाव लाने का।
एक पेड़ माँ के नाम भावनाओं से जुड़ा मिशन
सरकारों ने पहले भी कई हरित अभियान चलाए हैं, लेकिन इस बार की बात अलग है।
‘एक पेड़ माँ के नाम’ एक ऐसा विचार है जो सिर्फ पौधा लगाने की अपील नहीं करता, बल्कि हर नागरिक के दिल से जुड़ता है। हम माँ को क्या दे सकते हैं? शायद एक उपहार एक पेड़ जो न केवल प्रकृति को समर्पित हो, बल्कि हमारी भावनाओं और ज़िम्मेदारियों का प्रतीक भी बने।
कार्यशाला में उठा बड़ा मुद्दा
भोपाल में आयोजित इस कार्यशाला में एक और अहम मुद्दा सामने रखा गया — जल स्रोतों का लगातार बढ़ता प्रदूषण।
नदियाँ, तालाब और कुएँ जिनसे हमारी ज़िंदगी जुड़ी है, वो अब गंदगी, प्लास्टिक और केमिकल्स से जूझ रहे हैं।
कार्यशाला में विशेषज्ञों और अफसरों ने इस बात पर ज़ोर दिया कि प्राकृतिक जल स्रोतों की रक्षा के बिना पर्यावरण संरक्षण अधूरा है।
हम सभी को आने वाली पीढ़ी को बेहतर धरती और वातावरण देने के लिए पर्यावरण संरक्षण के प्रति सचेत होना होगा..
आज विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर भोपाल में ‘जल स्रोतों का प्रदूषण नियंत्रण’ विषय पर कार्यशाला में #एक_पेड़_माँ_के_नाम अभियान का शुभारंभ किया। इस अवसर पर पर्यावरण संरक्षण की… pic.twitter.com/VBKHgrtFeH
— Dr Mohan Yadav (@DrMohanYadav51) June 5, 2025
सम्मान और छात्रवृत्ति एक साथ
इस आयोजन में मध्यप्रदेश वार्षिक पर्यावरण पुरस्कार भी दिए गए — उन संस्थाओं को जिन्होंने वास्तव में धरती के लिए काम किया है, सिर्फ कागज़ पर नहीं। इसके साथ ही जलवायु परिवर्तन पर रिसर्च करने वाले पीएचडी छात्रों को छात्रवृत्ति देकर सरकार ने एक स्पष्ट संदेश दिया जो सोचते हैं, उन्हें अब बढ़ने का मौका मिलेगा। ह कदम सिर्फ प्रोत्साहन नहीं, एक गहरी समझ की झलक है कि बदलाव तभी आएगा जब युवाओं को ताक़त मिलेगी।
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भोपाल के पर्यावरण कार्यकर्ता इस अभियान से काफी उत्साहित हैं। एक महिला शिक्षिका ने कहा, “माँ के नाम एक पेड़ लगाना, ये बात दिल को छू गई। अब ये सिर्फ पेड़ नहीं, इज़्ज़त और कर्तव्य का प्रतीक है।” छात्रों ने भी कहा कि पहली बार सरकार ने पर्यावरण को पढ़ाई से जोड़ा है, और रिसर्च को सम्मान दिया है। ट्विटर पर कई यूज़र्स ने लिखा — “ऐसी योजनाएं सिर्फ कागज़ों तक सीमित ना रहें, जमीनी क्रियान्वयन हो तो ये देश को बदल सकती हैं।”
पर्यावरण संरक्षण कोई लग्ज़री मुद्दा नहीं है. ये अब ज़रूरत और ज़िम्मेदारी दोनों है। ‘एक पेड़ माँ के नाम’ जैसी मुहिमें अगर पूरे देश में फैलीं, तो लोग सिर्फ पौधे नहीं, भावनाएं भी उगाएँगे। मेरे लिए ये सिर्फ एक सरकारी इवेंट नहीं, एक मौका है हर इंसान को सोचने का कि क्या हम अपने बच्चों को एक सांस लेने लायक धरती दे पाएंगे?
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पेड़ लगाना आसान है, मगर उसे भावनाओं से जोड़ देना ही असली क्रांति है। ‘एक पेड़ माँ के नाम’ एक ऐसा बीज है जो अगर सही से सींचा गया, तो आने वाले वक्त में पूरे देश को हरा कर सकता है। ऐसी ही खबरों के लिए जुड़े रहें, और अपनी राय कमेंट में ज़रूर बताएं।