MP News: मध्य प्रदेश में बिजली आउटसोर्स कर्मचारियों की ज़िंदगी अचानक उथल-पुथल हो गई है। पहली बार, 10 हज़ार से ज़्यादा कर्मचारियों का ट्रांसफर ऐसे इलाकों में कर दिया गया है जो 10 से 80 किलोमीटर दूर हैं। कुछ को तो ऐसे गाँवों में भेजा गया है जहां जाने के लिए सीधा रास्ता भी नहीं है। अब सवाल ये है कम सैलरी में दूर नौकरी, ये इंसाफ है क्या?
पहली बार इतने बड़े पैमाने पर ट्रांसफर
मप्र मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी ने इतिहास रचते हुए पहली बार इतने बड़े पैमाने पर लाइन अटेंडेंट, सब-स्टेशन ऑपरेटर और कंप्यूटर ऑपरेटरों के ट्रांसफर किए हैं। ये तबादले इतने अचानक और व्यापक हैं कि कर्मचारियों के लिए ये एक झटका बनकर आए हैं।
भोपाल, रायसेन, राजगढ़, ग्वालियर, मुरैना, शिवपुरी, भिंड, सीहोर और अशोकनगर जैसे ज़िलों में सैकड़ों कर्मियों को उनके पुराने स्थानों से उठा कर दूरस्थ ग्रामीण इलाकों में भेज दिया गया।
एरियर भी नहीं मिला और अब ट्रांसफर की मार
इन कर्मचारियों की मुश्किलें यहीं खत्म नहीं होतीं। रिपोर्ट के मुताबिक, 11 महीने का बकाया एरियर भी इन्हें अब तक नहीं मिला है — जबकि इस पर हाईकोर्ट और श्रमायुक्त इंदौर का साफ़ निर्देश है।
अब जब पहले से तनख्वाह अधूरी हो, और ऊपर से यात्रा पर पेट्रोल-डीजल का खर्च जुड़ जाए, तो एक आम कर्मचारी अपने परिवार का पेट कैसे पालेगा?
दिव्यांग और महिला कर्मचारियों का भी ट्रांसफर
सबसे अफ़सोस की बात ये रही कि इस बार तबादलों में दिव्यांग और महिला कर्मचारियों को भी नहीं बख्शा गया।
2018 में ऐसे मामलों में संवेदनशीलता दिखाई गई थी, लेकिन इस बार 300 से ज़्यादा महिलाओं को ऐसे इलाकों में भेजा गया है जहां न ट्रांसपोर्ट है, न सुरक्षा। दिव्यांग कर्मचारियों को ट्रांसफर कर दिया जाना सिर्फ़ संवेदनहीनता नहीं, बल्कि सीधा शोषण कहा जा सकता है।
आर्थिक संकट की ओर बढ़ते आउटसोर्स कर्मचारी
Outsource कर्मचारियों की तनख्वाह पहले ही बेहद कम होती है। अब रोज़ 60–100 किमी का सफ़र करने में ही उनका आधा वेतन सिर्फ़ आने-जाने में खर्च हो जाएगा।
कई कर्मचारी भरण-पोषण के लिए लोन लेने की सोचने लगे हैं। नौकरी तो रही, लेकिन ज़िंदगी और परिवार की ज़रूरतें अब कैसे पूरी होंगी — इस पर कोई चर्चा नहीं।
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जब एक कम वेतन पाने वाले आउटसोर्स कर्मचारी को 80 किलोमीटर दूर भेजा जाता है, वो रोज़ आता-जाता है — तो वो सिर्फ़ नौकरी नहीं कर रहा होता, वो अपने सपनों, स्वास्थ्य और आत्मसम्मान की कीमत चुका रहा होता है।
मध्य प्रदेश सरकार का ये फैसला कहीं न कहीं व्यवस्था की असंवेदनशीलता को उजागर करता है। ऐसे फैसले लेने से पहले कर्मचारियों की ज़मीनी हालत, आर्थिक स्थिति और सामाजिक ज़िम्मेदारियों पर भी विचार होना चाहिए।
मध्य प्रदेश सरकार और ऊर्जा मंत्रालय को चाहिए कि वे इस मुद्दे में तुरंत हस्तक्षेप करें। तबादले अगर ज़रूरी थे, तो उन्हें मानवता और विवेक के साथ अंजाम दिया जाना चाहिए था। वरना ये कदम भविष्य में कर्मचारियों के आक्रोश और पलायन का कारण बन सकता है। ऐसी ही ज़मीनी खबरों के लिए जुड़े रहें — और इस मुद्दे पर आपकी क्या राय है, नीचे कमेंट करके ज़रूर बताएं।
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