केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ‘मिशन शक्ति’ की मध्य प्रदेश में विधिवत शुरुआत से पहले ही बड़े विवाद ने जन्म ले लिया है। महिला एवं बाल विकास विभाग की भर्ती प्रक्रिया में गड़बड़ी की शिकायतों के बाद योजना को अस्थायी रूप से रोक दिया गया है। एक निजी कंपनी द्वारा की गई भर्ती में अनियमितताओं, आरक्षण की अनदेखी और अवैध शुल्क वसूली के आरोप लगे हैं। अब योजना की पारदर्शिता और कार्यान्वयन पर सवाल उठ रहे हैं।
बिना टेंडर सौंपे गए 367 पद, उठे सवाल
महिला सशक्तिकरण के उद्देश्य से शुरू की गई ‘मिशन शक्ति’ योजना के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग ने प्रदेशभर में 416 पदों पर भर्ती की योजना बनाई थी। इनमें से 367 पद एक निजी मुंबई स्थित कंपनी टी एंड एम को आउटसोर्सिंग के जरिए बिना नया टेंडर जारी किए सौंप दिए गए। यह वही कंपनी है जो पहले से ही आईसीडीएस प्रोजेक्ट में कार्यरत थी। इसी पुराने नाते के आधार पर इसे दोबारा काम दिया गया, जो अब विवादों में है।
मप्र में कंपनी का दफ्तर नहीं, फिर भी जारी किया सरकारी प्रतीक
चौंकाने वाली बात ये है कि इस कंपनी का मध्यप्रदेश में कोई अधिकृत कार्यालय तक मौजूद नहीं है। फिर भी कंपनी ने महिला एवं बाल विकास विभाग के नाम और प्रतीक चिन्ह का उपयोग करते हुए भर्ती के विज्ञापन जारी किए, जिससे उम्मीदवारों को यह भर्ती पूरी तरह वैध और सरकारी लगी। विभाग ने इस अनधिकृत इस्तेमाल पर कोई कार्रवाई नहीं की, जिससे संदेह और गहराता गया।
आरक्षण की अनदेखी, पुरुषों को प्राथमिकता
इस भर्ती में कई ऐसी शिकायतें सामने आईं हैं जो योजना के मूल उद्देश्य — महिला सशक्तिकरण — पर ही सवाल खड़ा करती हैं। उदाहरण के तौर पर आरक्षण नीति का पालन नहीं किया गया। पुरुषों को महिलाओं के ऊपर प्राथमिकता दी गई। परीक्षा की भाषा केवल अंग्रेज़ी रखी गई, जिससे ग्रामीण और हिंदीभाषी उम्मीदवार पीछे रह गए।
इसके अलावा उम्मीदवारों से परीक्षा और दस्तावेज सत्यापन के नाम पर ₹1300 प्रति व्यक्ति वसूले गए। कई मामलों में बिना परीक्षा के ही चयन पत्र दे दिए गए।
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दस्तावेज सत्यापन बना दिखावा, वायरल हुए सौदेबाजी के ऑडियो
19 मई को भोपाल में दस्तावेज सत्यापन शिविर आयोजित किया गया जिसमें सैकड़ों उम्मीदवार पहुंचे। लेकिन सत्यापन प्रक्रिया में भारी अनियमितता देखी गई। उम्मीदवारों द्वारा लाए गए अनुभव पत्रों का कोई पुख्ता परीक्षण नहीं हुआ। इतना ही नहीं, सौदेबाजी के ऑडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो गए। इसके बाद विभाग ने आनन-फानन में भर्ती प्रक्रिया को रोक दिया और जांच की बात कही।
टैक्स भी महाराष्ट्र सरकार के खाते में?
सूत्रों के मुताबिक, इस आउटसोर्स भर्ती का सालाना ठेका ₹100 करोड़ के आसपास है, जिसमें कंपनी को अतिरिक्त 3% कमीशन भी दिया जाना था। चूंकि कंपनी महाराष्ट्र आधारित है और मप्र में उसका कोई दफ्तर नहीं है, इस कारण SGST का लाभ भी मप्र सरकार को नहीं, बल्कि महाराष्ट्र को मिल रहा था।
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अफसरों की चुप्पी और जवाबदेही से बचाव
जब मामले ने तूल पकड़ा, तो जिम्मेदार अफसरों ने एक-दूसरे पर टालने की नीति अपनाई। विभाग की प्रभारी आयुक्त निधि निवेदिता ने टिप्पणी से बचते हुए उप संचालक योगेंद्र यादव को जवाबदेही दी। यादव खुद इस बात को लेकर अनिश्चित दिखे कि कंपनी मध्यप्रदेश में पंजीकृत है या नहीं, और टैक्स कहां जमा हो रहा है।
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