मध्य प्रदेश की बेटियां अब सिर्फ घर की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि कारोबार की कमान भी संभाल रही हैं। राज्य में हर दूसरा स्टार्टअप किसी महिला द्वारा संचालित है। ये आंकड़ा सिर्फ संख्या नहीं, समाज में आ रहे बदलाव की तस्वीर है। खुद सरकार की नीतियां इस बदलाव की बड़ी वजह बन रही हैं। अब सवाल है क्या देश की बाकी राज्य सरकारें इससे कुछ सीखेंगी?
महिलाओं के हाथों में स्टार्टअप की बागडोर
पिछले एक साल में मध्य प्रदेश में मान्यता प्राप्त स्टार्टअप की संख्या 4012 से बढ़कर 5230 हो गई है। इनमें से 47% स्टार्टअप महिलाएं चला रही हैं। यानी हर दूसरा नया उद्यम अब किसी महिला की सोच और मेहनत की पहचान है।
2024 में महिला-नेतृत्व वाले स्टार्टअप की संख्या 1864 से बढ़कर 2490 हो गई जो कि दर्शाता है कि महिलाएं अब सिर्फ घर ही नहीं, कारोबार में भी लीड रोल में हैं।
गांव की दीदी से लेकर टेक्नोलॉजी की ड्रोन दीदी
मध्य प्रदेश की महिलाएं अब ड्रोन से लेकर ट्रेन और टोल तक संभाल रही हैं। शाजापुर जिले के चाचाखेड़ी गांव में टोल कलेक्शन की जिम्मेदारी ज्योति स्व-सहायता समूह की महिलाओं के हाथ है, जिन्होंने पिछले डेढ़ साल में 1.13 करोड़ रुपये का कलेक्शन किया।
अब “ड्रोन दीदी” योजना के तहत महिलाओं को ड्रोन उड़ाने की ट्रेनिंग दी जा रही है, जिससे वे कृषि और सर्वेक्षण जैसे आधुनिक कामों में भी कंधे से कंधा मिलाकर चलें।
सरकारी योजनाओं से महिलाओं को लाभ
महिला उद्यमियों को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने 30,264 महिला समूहों और 12,685 महिला उद्यमियों को 2% ब्याज अनुदान के रूप में कुल 648.67 लाख रुपये वितरित किए हैं। ‘लखपति दीदी योजना’, ‘मुख्यमंत्री उद्यम क्रांति योजना’, और ‘पितृहीन बालिका छात्रवृत्ति योजना’ जैसी पहलें महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में अहम साबित हो रही हैं।
प्रशासन से उद्योग तक हर क्षेत्र में बेटियों का नाम
मध्यप्रदेश की महिलाएं केवल स्टार्टअप ही नहीं, बल्कि प्रशासनिक सेवाओं में भी मजबूत उपस्थिति दर्ज कर रही हैं।
राज्य ने अब तक तीन महिला राज्यपाल, एक महिला मुख्यमंत्री और दो महिला मुख्य सचिव देखे हैं। मौजूदा कैबिनेट में पांच महिलाएं हैं, जो जल, शहरी विकास, पिछड़ा वर्ग, महिला एवं बाल कल्याण जैसे विभाग संभाल रही हैं।
मध्य प्रदेश के छोटे कस्बों और गांवों में लोग गर्व से कहते हैं। “अब हमारी बहन-बेटियां किसी से कम नहीं हैं।” भोपाल की उद्यमी वर्षा सिंह कहती हैं, “पहले लगता था बिज़नेस सिर्फ मर्दों का काम है, अब तो लगता है कि महिलाएं ज्यादा जिम्मेदारी से काम करती हैं।” एक सरकारी अधिकारी ने कहा, महिला स्टार्टअप फाउंडर्स कम रिस्क लेती हैं, मगर उनका सक्सेस रेट बहुत ऊंचा है।
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आज से कुछ साल पहले तक यह कल्पना करना भी कठिन था कि एक गांव की महिला ड्रोन उड़ाएगी या टोल प्लाज़ा का मैनेजमेंट संभालेगी। मगर अब यह हकीकत है। सरकार अगर इसी तरह से स्किलिंग, फंडिंग और मेंटरशिप का समर्थन करती रही, तो मध्यप्रदेश देश का ‘महिला स्टार्टअप कैपिटल’ बन सकता है। और यह सिर्फ एक राज्य नहीं, पूरे समाज के लिए मिसाल होगी।
मध्य प्रदेश में महिलाओं की यह चुपचाप आती क्रांति अब गूंज बन रही है और शायद देशभर में सुनाई देने वाली है।
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