अगर आपके बच्चे का दाखिला CBSE स्कूल में है, तो यह खबर आपको चौंका सकती है। इस सत्र से पहली और दूसरी कक्षा तक अंग्रेजी की जगह मातृभाषा में पढ़ाई होगी। अब ‘Mango’ नहीं, पहले ‘आम’ सिखाया जाएगा। CBSE ने पूरे देश के स्कूलों में यह नया नियम लागू कर दिया है और भोपाल समेत सभी शहरों में इसकी तैयारी शुरू हो चुकी है।
अब KG से Class 2 तक पढ़ाई सिर्फ मातृभाषा में
CBSE बोर्ड ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया है: अब केजी से लेकर दूसरी कक्षा तक बच्चों को सिर्फ उनकी मातृभाषा में पढ़ाया जाएगा। अंग्रेजी शब्दों को हटाकर अब बच्चा ‘क’ से ‘कबूतर’ और ‘आ’ से ‘आम’ सीखेगा, न कि ‘A for Apple’। इस बदलाव का उद्देश्य है बच्चों की नींव मजबूत करना, भाषा से डर हटाना और सोचने की क्षमता को बढ़ाना।
नई शिक्षा नीति के तहत आया यह बड़ा फैसला
यह फैसला राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत लिया गया है, जिसमें कहा गया है कि छोटे बच्चों को वही भाषा सबसे जल्दी समझ आती है जिसमें वे घर में बात करते हैं। अब स्कूलों को यही करना होगा। बच्चों की भाषा में उन्हें दुनिया समझाना। इससे बच्चों का मानसिक विकास बेहतर होगा और शिक्षा का स्तर गहराई से मजबूत होगा।
भोपाल के 150 स्कूल और 2 लाख बच्चे सीधे प्रभावित
सिर्फ भोपाल में ही करीब 150 CBSE स्कूल हैं, जिनमें दो लाख से अधिक बच्चे पढ़ते हैं। ये सभी बच्चे अब इस बदलाव के तहत पढ़ाई करेंगे। स्कूलों को अगले 18 दिनों में इस बदलाव को पूरी तरह लागू करना है, और इसके लिए CBSE ने उनसे रिपोर्ट भी मांगी है। हर स्कूल को यह बताना होगा कि उन्होंने इसे कैसे और कितनी गंभीरता से लागू किया।
देखें क्यों जरूरी थी मातृभाषा में पढ़ाई?
पेरेंट्स और शिक्षा विशेषज्ञ लंबे समय से कह रहे थे कि छोटे बच्चों को अंग्रेजी में पढ़ाना एक तरह का दबाव होता है। बच्चों को ना तो समझ आता है, और ना ही वे घर जाकर किसी को बता पाते हैं कि स्कूल में क्या सीखा। अब ‘Mango’ की जगह ‘आम’ सीखकर वे खुद को ज्यादा जुड़ा हुआ महसूस करेंगे। एक अभिभावक ने कहा, “अब दादी से बात करते समय बच्चा डरता नहीं, खुलकर बताता है कि ‘आज मैंने नीला रंग पहचाना’।
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शिक्षा में बदलाव या एक नई शुरुआत
पालक महासंघ के प्रबोध पांड्या कहते हैं कि यह बदलाव सिर्फ एक नीति नहीं, बच्चों के भविष्य की दिशा तय करेगा। मातृभाषा में पढ़ाई से बच्चे चीज़ों को बेहतर समझेंगे, और उनमें कॉन्फिडेंस बढ़ेगा। शिक्षा अब सिर्फ रटने की चीज नहीं रह जाएगी, बल्कि सोचने और समझने का एक जरिया बनेगी।
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स्कूलों को मिली सख्त हिदायत
CBSE ने सभी स्कूलों से कहा है कि वे इस फैसले को हल्के में न लें। स्कूलों को रिपोर्ट देना जरूरी होगा कि उन्होंने इस फैसले को कैसे लागू किया, और किन चीजों में बदलाव किए गए। साथ ही शिक्षकों को भी नई गाइडलाइंस के अनुसार ट्रेनिंग दी जा रही है।
ज्यादातर माता-पिता इस फैसले से खुश हैं। उन्हें लगता है कि यह एक “लेट बट राइट” फैसला है जो पहले ही हो जाना चाहिए था। हालांकि कुछ लोगों को डर है कि आगे चलकर अंग्रेजी की पकड़ कमजोर न हो जाए। लेकिन शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि शुरुआत मातृभाषा से हो, तो आगे की भाषाएं आसानी से सीखी जा सकती हैं। असली सवाल ये नहीं है कि बच्चा ‘Mango’ कब सीखेगा सवाल ये है कि वो ‘आम’ को सही से पहचान पाएगा या नहीं।
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CBSE का यह फैसला देश की शिक्षा व्यवस्था में एक नई क्रांति ला सकता है, बशर्ते इसे ईमानदारी से लागू किया जाए। अब वक्त है कि हम बच्चों की भाषा में उन्हें दुनिया समझाएं ताकि वे सिर्फ रटें नहीं, समझें और सोचें भी।
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