सरकार भले ही गरीबों के इलाज के लिए आयुष्मान भारत जैसी योजनाएं चला रही हो, लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां कर रही है। एक ऐसा ही मामला मध्य प्रदेश के निजी अस्पताल से आया है। मध्य प्रदेश के कई निजी अस्पतालों में आयुष्मान कार्डधारकों के साथ भेदभाव और लापरवाही के गंभीर मामले एक के बाद एक सामने आ रहे हैं। मरीजों को जरूरी इलाज से वंचित किया जा रहा है और कहीं-कहीं फर्जीवाड़े के आरोप भी लग रहे हैं।
ICU से हटाकर जनरल वार्ड में फेंक दिया
भोपाल के अरेरा कॉलोनी स्थित एक बड़े निजी अस्पताल में ऐसा ही चौंकाने वाला मामला सामने आया। जहाँ सीने में दर्द की शिकायत लेकर पहुंचे एक मरीज को ICU और वेंटिलेटर पर रखा गया, लेकिन जब परिजनों ने बताया कि उनके पास आयुष्मान कार्ड है, तो इलाज बीच में रोककर उसे जनरल वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया। और अंत में अस्पताल ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि आयुष्मान योजना के अंतर्गत ICU की सुविधा नहीं दी जा सकती।
निजी अस्पतालों का गलत रवैया
मध्य प्रदेश के कई निजी अस्पतालों ने सिर्फ नाम के लिए कुछ साधारण प्रक्रियाओं की मान्यता ली हुई है, लेकिन गंभीर सर्जरी या इलाज बिलकुल भी नहीं हैं। खास तौर पर आयुष्मान योजना के पैकेज अमाउंट को “कम” बताकर वे इससे मुनाफा नहीं देख पाते। नतीजा ये होता है कि जरूरतमंद मरीज को या तो आधा-अधूरा इलाज मिलता है, या इलाज के बदले जेब से पैसे खर्च करने को मजबूर किया जाता है।
फर्जीवाड़े की भी खुली पोल
मध्य प्रदेश के कुछ छोटे अस्पतालों ने तो योजना का पैसा निकालने के लिए मरीजों को बिना जरूरत ICU में भर्ती करना, अनावश्यक जांचें कराना, और वेंटिलेटर लगाने जैसे झूठे दावे तक किए हैं। और इसी फर्जीवाड़े की वजह से भोपाल, ग्वालियर और सीहोर के 8 निजी अस्पतालों की मान्यता रद्द की जा चुकी है।
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हेल्थ इंश्योरेंस वाले VIP, आयुष्मान वाले नजरअंदाज
एक और गंभीर मुद्दा सामने आया है की कई अस्पतालों में भुगतान करने वाले या हेल्थ इंश्योरेंस वाले मरीजों को ज्यादा प्राथमिकता दी जाती है। वहीं आयुष्मान कार्डधारकों को बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित रखा जाता है। इलाज में देरी, स्टाफ का रूखा व्यवहार और तकनीकी अड़चनों के नाम पर मरीजों को परेशान करना आम बात हो गई है।
SOP अब तक अधूरी, जवाबदेही तय नहीं
छह महीने बीत गए, लेकिन आयुष्मान योजना से जुड़े SOP यानी स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर अब तक तैयार नहीं हो सके हैं। इन SOPs में क्लेम सेटलमेंट, मरीजों की शिकायतों और इलाज की गुणवत्ता से जुड़े नियम तय किए जाने हैं, ताकि अस्पतालों की मनमानी पर लगाम लगाई जा सके। डॉ. योगेश भरसट (CEO, आयुष्मान निरामयम, मप्र) के अनुसार, शिकायतें सूचीबद्ध की जा रही हैं और जल्द ही पैकेज से जुड़ी समस्याओं पर बैठक बुलाई जाएगी।
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मुझे लगता है, अगर ये आयुष्मान योजना केवल कागजों में ही दमदार रहेगी और जमीन पर इस तरह की घटनाएं होती रहीं, तो आयुष्मान भारत जैसी एक अच्छी योजना अपना उद्देश्य ही खो जाएगा। लोगों की राय भी यही है की “अगर इलाज में भेदभाव होगा तो गरीब कहां जाएंगे?” सोशल मीडिया पर भी कई लोग पूछ रहे हैं कि सरकार इन अस्पतालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई कब करेगी?
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