MP News: भोपाल में एक ऐतिहासिक दिन तब दर्ज हुआ जब मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने दिव्यांगजनों को न केवल स्मार्टफोन और मोटराइज्ड साइकिलें सौंपीं, बल्कि उनके संघर्ष को सराहते हुए उन्हें सीधी सरकारी नौकरियों के नियुक्ति पत्र भी दिए। इस पूरे कार्यक्रम ने न सिर्फ संवेदनशीलता दिखाई, बल्कि एक सशक्त संदेश भी दिया — “दिव्यांग दया के नहीं, अधिकार के हकदार हैं।”
सीएम मोहन का स्पष्ट संदेश
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने अपने भाषण में कहा कि दिव्यांगजन अपनी मेहनत, आत्मविश्वास और जज्बे के बल पर समाज में वो मुकाम हासिल करते हैं जो कई बार सामान्य व्यक्ति भी नहीं कर पाता। उन्होंने कहा कि दिव्यांगजनों को किसी सहानुभूति की जरूरत नहीं — उन्हें चाहिए मौके, सम्मान और बराबरी का हक।
उन्होंने यह भी बताया कि मध्यप्रदेश सरकार दिव्यांगजनों को सीधी भर्ती में 6% आरक्षण देती है, जो कि राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित 4% से अधिक है। अब तक राज्य में 2600 से अधिक दिव्यांगजनों को नियुक्ति दी जा चुकी है।
दिव्यांगजन का सशक्तिकरण
मध्यप्रदेश सरकार का संकल्पसामाजिक न्याय एवं दिव्यांगजन सशक्तिकरण कार्यक्रम
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव द्वारा दिव्यांगजनों को नियुक्ति पत्र, हितलाभ एवं सहायता उपकरणों का वितरण
स्थान -भोपाल @DrMohanYadav51 @socialwelfaremp #CMMadhyaPradesh… pic.twitter.com/dlDhy6lX6k
— Chief Minister, MP (@CMMadhyaPradesh) June 4, 2025
रोज़गार, तकनीक और आत्मनिर्भरता का संगम
इस कार्यक्रम में लोक निर्माण विभाग के 33, पुरातत्व विभाग के 10 और जल संसाधन विभाग के 5 दिव्यांगजनों को नौकरी के नियुक्ति पत्र सौंपे गए। साथ ही, 97 लाभार्थियों को उनकी ज़रूरत के अनुसार स्मार्टफोन और मोटराइज्ड साइकिलें दी गईं, जिससे वे न केवल तकनीकी रूप से सक्षम बनें, बल्कि अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी में भी आत्मनिर्भर हो सकें।
महापुरुषों से प्रेरणा
मुख्यमंत्री मोहन यादव जी ने अपने भाषण में महाकवि सूरदास, स्वामी रामभद्राचार्य और प्रसिद्ध संगीतकार रविंद्र जैन जैसे दिव्यांग महानुभावों का ज़िक्र करते हुए बताया कि शारीरिक बाधाएं कभी भी किसी के ज्ञान, सोच और रचनात्मकता के सामने रुकावट नहीं बनतीं। यह प्रेरणा आज की युवा पीढ़ी और समाज के लिए भी एक उदाहरण है।
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ब्रेल लिपि में कानूनी अधिकारों की जानकारी भी पहुंचाई गई
कार्यक्रम के दौरान ‘दिव्यांग अधिकार अधिनियम 2016’ की ब्रेल लिपि में प्रकाशित पुस्तिका का विमोचन भी किया गया, जिससे दृष्टिबाधित नागरिकों को भी उनके अधिकारों की जानकारी सरल भाषा में मिले।
समाज का बड़ा वर्ग इस पहल को एक सकारात्मक और बहुप्रतीक्षित कदम मान रहा है। कई दिव्यांग युवाओं और उनके परिवारों का मानना है कि सरकारी नौकरियों में आरक्षण और स्मार्ट डिवाइसेज़ उन्हें समाज की मुख्यधारा में जोड़ने में मदद करेंगे।
मेरा नजरिया यह है कि जब तक समाज दिव्यांगता को ‘कमज़ोरी’ नहीं बल्कि ‘अलग क्षमता’ के रूप में देखना शुरू नहीं करता, तब तक समावेशन अधूरा है। लेकिन ऐसे कदमों से उम्मीद की किरण ज़रूर दिखती है।
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दिव्यांगजनों के लिए यह सिर्फ नियुक्ति पत्र नहीं, बल्कि सम्मान, आत्मनिर्भरता और एक नई पहचान का तोहफा है।
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