मध्यप्रदेश के लाखों सरकारी कर्मचारियों के लिए अच्छी खुशखबरी सामने आई है। 2016 से रुकी हुई पदोन्नति प्रक्रिया अब दोबारा शुरू हो सकती है। मुख्यमंत्री मोहन यादव जी के द्वारा घोषणा के बाद शासन स्तर पर बैठकों का दौर शुरू हो गया है। लेकिन क्या नई पदोन्नति नीति सबको मंजूर होगी? या फिर एक बार फिर कर्मचारियों को मायूसी हाथ लगेगी?
2016 से अब तक बिना प्रमोशन ही रिटायर हो गए हजारों कर्मचारी
8 साल से कर्मचारियों को प्रमोशन नहीं मिल रहा है। इस दौरान हज़ारों कर्मचारी बिना किसी पदोन्नति के सेवानिवृत्त हो गए। अप्रैल 2025 में मुख्यमंत्री ने पदोन्नति प्रक्रिया शुरू करने की घोषणा की थी, जिससे सरकारी कर्मचारियों में उम्मीद की किरण जगी।
फिर फंस गया मामला — नया ड्राफ्ट बना वजह
मुख्यमंत्री मोहन यादव जी की घोषणा के बाद मुख्य सचिव अनुराग जैन ने दोनों पक्षों सपाक्स और अजाक्स के साथ बैठकें कीं। जिसमे उद्देश्य था पदोन्नति नीति पर आपसी सहमति बनाना। मुख्य सचिव ने साफ़ कहा कि “छोटी-छोटी बातों पर अड़ना नहीं चलेगा, नहीं तो हम सब फंसेंगे। लेकिन असल में अड़चन है नए ड्राफ्ट को लेकर विरोधाभास में।
देखें कौन क्या चाहता है
सपा क्स (सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग संस्था) की माँग
क्रीमीलेयर वालों को प्रमोशन में आरक्षण नहीं मिले।
जिन्हें सुप्रीम कोर्ट के अनुसार रिवर्ट किया जाना है, उन्हें दोबारा प्रमोट न किया जाए।
आरक्षित वर्ग से आए कर्मचारियों को अनारक्षित पदों पर प्रमोशन न मिले।
अजाक्स (अनुसूचित जाति जनजाति कर्मचारी संगठन) की माँग
गोरकेला प्रस्ताव और 2002 के नियमों से बाहर जाकर कोई नई नीति न बने।
जिन्हें पहले प्रमोशन मिल चुका है, उन्हें रिवर्ट न किया जाए।
डीपीसी की प्रक्रिया पहले अनारक्षित पदों के लिए हो, फिर ST और SC पदों के लिए।
देखें क्या बानी सहमति
सूत्रों के अनुसार, अजाक्स ज़्यादातर बिंदुओं पर सहमत हो गया है, लेकिन सपाक्स अभी भी अड़ा हुआ है।
ऐसे में, प्रमोशन प्रक्रिया फिर लटक सकती है। ACS संजय दुबे को अब इस पूरे मामले की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है और संभव है कि कर्मचारियों की फिर से सुनवाई हो।
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लाखों कर्मचारियों की निगाहें सरकार पर
8 साल से कोई पदोन्नति नहीं हुई। कर्मचारी रिटायर हो रहे हैं, लेकिन ग्रेड-पे नहीं बढ़ रहा। सरकार कहती है — “हम देना चाहते हैं, बस आपस में सहमति बनाओ।” लेकिन क्या ये सिर्फ़ एक और राजनीतिक वादा है, या वाकई अब कुछ होगा?
सालों से थमी पदोन्नति प्रक्रिया से लाखों कर्मचारियों का मनोबल गिरा है। मध्य प्रदेश सरकार को अब निर्णयात्मक भूमिका निभानी होगी। नहीं तो ये मामला फिर कोर्ट-कचहरी में उलझ जाएगा। और कर्मचारी एक बार फिर न्याय के लिए तरसते रह जाएंगे।
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