मध्य प्रदेश में लागू होगा तीन रंग का हैंडपंप, देखें इसके पीछे की पूरी कहानी

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MP News: पानी की कमी से जूझते मध्य प्रदेश को मिला एक स्मार्ट समाधान। उज्जैन की सीईओ जयति सिंह का ‘तीन रंगों वाला हैंडपंप मॉडल’ अब पूरे प्रदेश में लागू होने जा रहा है। यह रंगीन कोडिंग सिर्फ रंग नहीं, जल प्रबंधन की एक नई सोच है।

अब हर गांव के हैंडपंप पर लगेगा रंग, जो बताएगा कहां पानी है, कहां खतरा है और कहां ज़रूरी है सुधार। यह सिर्फ तकनीक नहीं, बल्कि गांवों के लिए राहत की असली रणनीति बन चुका है।

कैसे काम करता है तीन रंगों का हैंडपंप मॉडल?

मार्च-अप्रैल 2025 में उज्जैन जिले में शुरू हुए इस मॉडल में हर हैंडपंप को एक विशेष रंग से कोड किया गया है:-

  • हरा रंग: जहां सालभर पर्याप्त पानी उपलब्ध है। 

  • पीला रंग: जहां गर्मियों में पानी की कमी होती है।

  • लाल रंग: जो पूरी तरह सूख चुके हैं और सुधार की ज़रूरत है।

इस रंगों के ज़रिए अब ये साफ हो जाता है कि कहां मरम्मत करनी है, कहां गहराई बढ़ानी है, और कहां वाटर रिचार्ज की ज़रूरत है। यह मॉडल गांवों के लिए पानी की उपलब्धता का real-time map बन गया है।

हर हैंडपंप को मिला यूनिक कोड और जियो टैग

हर एक हैंडपंप को जियो टैगिंग और गूगल अर्थ आधारित निगरानी से यूनिक कोड दिया गया है। इससे अब अधिकारियों को एक क्लिक पर पता चल जाता है कि कहां कितना पानी है, कहां शिकायत आई है और कौन से पंप को कब ठीक किया गया था।

उज्जैन जिले के 9440 हैंडपंपों में से:

  • 6500 हरे (पूरे साल पानी)

  • 2000 पीले (मौसमी पानी की कमी)

  • 940 लाल (पूरी तरह सूखे)

अब इन आंकड़ों के आधार पर जल विभाग मरम्मत, रिचार्ज और सुधार कार्य तय कर रहा है।

अब जल संकट नहीं, समाधान का सिस्टम बनेगा

इस मॉडल ने न सिर्फ हैंडपंपों की स्थिति साफ की है, बल्कि पानी के प्रबंधन को व्यावहारिक बना दिया है। जिला प्रशासन ने इसके साथ-साथ शोक पिट, वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर, परकोलेशन टैंक और कुएं रिचार्ज जैसे स्थायी उपाय भी तेज़ी से लागू किए हैं — खासकर पीले रंग वाले क्षेत्रों में।

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कंट्रोल रूम से मिलेगी 24 घंटे में राहत

हर गांव और जनपद स्तर पर अब कंट्रोल रूम स्थापित किए गए हैं, जहां नल-जल और हैंडपंप से जुड़ी शिकायतों का 24 घंटे में निवारण हो रहा है। अब ग्रामीणों को इंतजार नहीं करना पड़ता बल्कि समाधान रिकॉर्ड टाइम में मिलता है।

मुझे लगता है यह मॉडल सिर्फ तकनीकी नवाचार नहीं, बल्कि व्यवहारिक समझदारी का उदाहरण है। ग्रामीणों की राय है कि अब उन्हें पता होता है किस हैंडपंप से भरोसेमंद पानी मिलेगा और कहां शिकायत करनी है।

सोशल मीडिया और गांवों में लोग इस मॉडल को “जल संजीवनी” कह रहे हैं। जयति सिंह की सोच को ग्रामीण ही नहीं, राज्य स्तर के अधिकारी भी खुले दिल से सराह रहे हैं।

उज्जैन से निकला यह मॉडल दिखाता है कि जब टेक्नोलॉजी और नीयत मिलती है, तो बदलाव खुद-ब-खुद गांवों तक पहुंचता है। अगर ऐसे नवाचार हर क्षेत्र में अपनाए जाएं, तो जल संकट जैसी समस्याएं इतिहास बन सकती हैं।

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  • Atmaram Maha Vidyalaya

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