MP News: मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जी के द्वारा शुरू की गई मुख्यमंत्री सीखो-कमाओ योजना (MMKSY) का उद्देश्य था युवाओं को प्रशिक्षण और रोजगार के अवसर देना। लेकिन ताजा आंकड़े और जमीनी हकीकत बताते हैं कि यह योजना अब अपने उद्देश्य से दूर जा चुकी है। युवाओं को न नौकरी मिल रही है, न समय पर स्टाइपेंड, और न ही भरोसेमंद ट्रेनिंग।
सीखो-कमाओ योजना के चौकाने वाले आंकड़े
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लक्ष्य: 45,000 युवाओं को प्रशिक्षण।
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हकीकत: केवल 1,633 युवाओं को प्रशिक्षण मिला।
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रोजगार प्राप्त: सिर्फ 275 युवाओं को – यानी मात्र 0.3% सफलता।
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32 ज़िले: जिनमें एक भी प्रशिक्षण नहीं हुआ।
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स्टाइपेंड भुगतान: महीनों की देरी, लगातार शिकायतें।
जहां ग्वालियर, इंदौर और जबलपुर जैसे शहरों से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद थी, वहीं यहां भी आंकड़े बेहद कमजोर हैं। मंदसौर, टीकमगढ़ जैसे कई ज़िलों में एक भी युवा को रोजगार नहीं मिला। ज़िलों में प्रशिक्षण संस्थानों की संख्या कम है, और जहां संस्थान हैं भी, वहां अच्छा रोजगार नहीं है और युवाओं के पसंद का कमा नहीं है।
स्टाइपेंड बना सिरदर्द
सीखो-कमाओ योजना के तहत युवाओं को ₹8,000 से ₹10,000 तक प्रतिमाह स्टाइपेंड देने का वादा किया गया था। लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि कई महीनों तक युवाओं को पैसा नहीं मिला। इससे उनका मनोबल गिरा है और बहुत से युवा अब योजना में दिलचस्पी ही नहीं ले रहे।
ट्रेनिंग सिर्फ दिखावा बन गई
बहुत से प्रशिक्षणार्थियों का कहना है कि संस्थानों में सिर्फ “खानापूर्ति” हो रही है। न कोई व्यावहारिक अनुभव मिल रहा है, न ही इंडस्ट्री एक्सपोजर। ट्रेनिंग अगर मिल भी जाते तो ट्रेनिंग के बाद रोजगार की कोई गारंटी नहीं दी जा रही।
NAPS स्कीम की भी बुरी हालत
नेशनल अप्रेंटिसशिप प्रमोशन स्कीम (NAPS) भी MP में असफल होती दिख रही है। 29 ज़िले जहां एक भी अप्रेंटिसशिप नहीं हुआ। 81,078 संभावित वैकेंसी में से सिर्फ 20,485 युवाओं को प्रशिक्षण जिनमे सिर्फ 1,147 युवाओं को रोजगार मिला यह पूरा आंकड़ा बताता है कि सिर्फ राज्य नहीं, बल्कि केंद्र की स्कीमें भी जमीनी स्तर पर सही तरीके से लागू नहीं हो पा रही हैं।
और यही कारण है की अब कई युवाओं का कहना है कि उन्होंने योजना में रजिस्ट्रेशन किया, लेकिन कोई कॉल या ट्रेनिंग ऑफर नहीं आया। किसी को दो-दो महीने से स्टाइपेंड नहीं मिला। कुछ तो अब पोर्टल खोलना भी बंद कर चुके हैं।
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शासन स्तर पर करना होगा समाधान
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प्रशिक्षण की गुणवत्ता में सुधार करें, केवल नाम के सर्टिफिकेट नहीं, असली स्किल्स सिखाएं।
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स्टाइपेंड का समय पर भुगतान सुनिश्चित किया जाए।
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रोजगार के अवसरों में वृद्धि हो – कंपनियों से समन्वय मजबूत किया जाए।
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जिलों को लक्ष्य के अनुसार जिम्मेदारी दी जाए।
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पोर्टल को एक्टिव और पारदर्शी बनाया जाए, ताकि युवा भरोसा कर सकें।
मुख्यमंत्री सीखो-कमाओ योजना युवाओं की उम्मीद बन सकती थी, लेकिन वर्तमान में यह एक नाकाम योजना बनकर रह गई है। योजनाओं से नहीं, कार्यान्वयन से बदलाव आता है। अगर राज्य सरकार समय रहते इसका फॉलोअप और सुधार नहीं करती, तो MP की युवा पीढ़ी और गहराई में बेरोजगारी और हताशा में डूब जाएगी।
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