भोपाल से लेकर बैतूल तक सरकारी दफ्तरों में खुशी की लहर दौड़ गई है। मध्य प्रदेश सरकार ने 13 साल बाद HRA समेत कई भत्तों में जबरदस्त बढ़ोतरी का ऐलान किया है। हजारों कर्मचारियों की जेब अब पहले से ज्यादा भारी होने वाली है और इसका असर उनकी ज़िंदगी पर साफ़ दिखेगा। लेकिन आखिर इस फैसले का असली मतलब क्या है? कौन से कर्मचारी होंगे सबसे बड़े फायदे में? और क्या ये बदलाव लंबे समय तक टिक पाएंगे?
सरकार ने बदली HRA की पूरी गिनती
पहले कर्मचारियों को एचआरए कितना मिलेगा, इसको लेकर बड़ी उलझन थी। सरकार ने 3 अप्रैल को आदेश जारी तो किया, लेकिन उसमें साफ नहीं था कि HRA किस आधार पर दिया जाएगा। अब 5 मई को आया संशोधित आदेश इस बात को पूरी तरह स्पष्ट कर देता है , कर्मचारियों को HRA उनके मौजूदा वेतन पर ही मिलेगा।
मतलब ये कि अब किसी भी सरकारी कर्मचारी का जो बेसिक + ग्रेड पे है, उस पर 5%, 7%, या 10% की दर से HRA जुड़ेगा। यह दर शहर के वर्गीकरण के अनुसार तय होगी — भोपाल, इंदौर जैसे महानगरों में यह 10% तक जा सकता है।
नई नियुक्तियों पर भी असर: पहले साल से मिलेगा मकान भत्ता
सरकारी विभागों में जो नव नियुक्त कर्मचारी होते हैं, उन्हें पहले तीन साल तक क्रमश: 70%, 80% और 90% वेतन मिलता है। ऐसे में सवाल ये था कि HRA किस स्लैब पर मिलेगा? संशोधित आदेश में कहा गया है कि जिस वेतन पर भुगतान हो रहा है, उसी पर HRA की गणना की जाएगी।
उदाहरण के लिए, अगर कोई कर्मचारी भोपाल में अपनी नौकरी के पहले साल में 15,000 रुपये वेतन पा रहा है, तो उसे 10% यानी ₹1,500 मकान भत्ता अलग से मिलेगा। धीरे-धीरे जैसे वेतन बढ़ेगा, HRA भी बढ़ेगा।
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2010 के बाद पहली बार बाकी भत्तों में भी बड़ी राहत
मकान भत्ते के साथ-साथ सरकार ने कई पुराने भत्तों को भी रिवाइज़ किया है — जो साल 2010 के बाद से जमे हुए थे। इनमें शामिल हैं:-
सचिवालय भत्ता
आदिवासी क्षेत्र भत्ता
विकलांगता भत्ता
यात्रा और जोखिम भत्ते
पुलिसकर्मियों के लिए वर्दी और आहार भत्ता
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1 अप्रैल 2025 से ये सभी नए रेट लागू होंगे। ये फैसला सरकार के उस बड़े वर्ग को राहत देता है, जो पिछले कई सालों से महंगाई के बीच पुरानी सैलरी ढो रहा था।
भोपाल के एक शिक्षक कहते हैं, “हम तो भूल ही चुके थे कि भत्ते कभी बढ़ते भी हैं। ये फैसला ना सिर्फ हमारी जेब के लिए फायदेमंद है, बल्कि ये एक संकेत भी है कि सरकार अब कर्मचारियों की सुनने लगी है।”
कर्मचारी संगठनों का कहना है कि ये एक “संवेदनशील फैसला” है, लेकिन वो चाहते हैं कि सरकार हर दो साल में भत्तों की समीक्षा करने की परंपरा शुरू करे, ताकि अगली बार 13 साल का इंतज़ार न करना पड़े। मेरी नज़र में यह कदम सिर्फ एक वित्तीय राहत नहीं है, बल्कि एक मानसिक संबल भी है जो कर्मचारियों को बेहतर काम करने के लिए प्रेरित करेगा।
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सरकार का यह फैसला स्वागत योग्य है, मगर अब ज़रूरत इस बात की है कि यह सिर्फ एक चुनावी स्टंट बनकर न रह जाए। नियमित समीक्षा, पारदर्शिता और समय पर भुगतान यही एक स्थायी सिस्टम की पहचान है। ऐसी ही खबरों के लिए जुड़े रहें, और अपनी राय कमेंट में जरूर बताएं।